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परहितार्थकारिता गुण पर
उपकार करने वाले हे बुद्धि-मकरगृह ! तेरे चरणों में नमता हूँ। गुणरत्न के रोहिणाचल इस राजकुमार को मान देता हूँ । इस प्रकार वे प्रसन्न होकर बोल रहे थे इतने में सूर्योदय होते वहां एक स्थूल व स्थिर सूड वाला जलाक्ष नामक हाथी आ पहुँचा । वह सूड के द्वारा भीम व मंत्रीकुमार को अपनी पीठ पर लेकर उक्त काली के मंदिर से निकल शीघ्र आकाश में उड़ गया ।
तब कुमार विस्मित होकर बोला कि-हे मित्र ! क्या इस मनुष्य लोक में कोई ऐसा उत्तम व उडने वाला हाथी होगा ? तब जिन वचन से भावित बुद्धिवाला मन्त्रीकुमार स्पष्ट कहने लगा कि-हे मित्र ! ऐसी कोई बात ही नहीं जो कि संसार में संभव न हो । तथापि यह तो कोई तेरे पुण्य से प्रेरित , देवता जान पड़ता है । अतः यह चाहे जहां जावे, इससे अपने को लेश मात्र भी भय नहीं होगा।
इस भांति वे दोनों बातें कर रहे थे । इतने में वह हाथी झट आकाश से उतर कर एक शून्य नगर के द्वार पर उनको छोड़कर कहीं चला गया । तब भीमकुमार अपने मित्रको बाहिर छोड़ कर अकेला ही नगर में घुसा । उसने नगर के मध्य में आने पर एक नरसिंहके आकारका याने नीचे का अंग मनुष्य समान मुख में सिंह समान जीव देखा । और उसने मुख में एक रूपवान पुरुषको पकड़ रखा था । वह पुरुष "मेरे प्राण मत हरण कर" ऐसा बारंबार कहता हुआ रो रहा था । उसको देखकर राजकुमार ने सोचा कि-अहो ! यह भयंकर कर्म क्या है ? अतः वह सविनय प्रार्थना करने लगा कि इस पुरुष को छोड़ दे । तब उसने दोनों आंखे खोल, राजकुमार को देखकर उस मनुष्य को मुह में से निकाल अपने पैर के नीचे रखकर, मुसकराकर कहा कि-हे प्रसन्न