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भीमकुमार की कथा
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स्त्री वासगृह में गई, वह वहां तुझे न देखकर घबराई । तब वह भौह चढ़ाकर पहरेदारों से पूछने लगी तो वे भी बोले कि अरे ! हमारे जागते हुए हमको भी धोखा देकर चला गया है । पश्चात् सर्वत्र खोज करने पर भी तेरा पता न लगा । तब राजा को कहलाया कि-रात्रि के प्रथम प्रहर में कुमार को कोई हर ले गया है।
यह सुन तेरे पिता व माताएं विलाप करने लगे । तब किसी के अंग में कुल देवी उतर कर इस प्रकार कहने लगी कि-हे राजन् ! धीरज धरो। तुम्हारे पुत्र को रात्रि को एक नीच योगी ने उत्तर-साधक के मिष से उसका मस्तक लेने के लिये हरणे किया है । परन्तु उसको यक्षिणी अपने घर ले गई है, इत्यादि सर्व वृत्तान्त कह कर कहा कि-थोड़े दिनों अनन्तर वह महान् विभूति के साथ यहां आ पहुँचेगा । यह कहकर वह अपने स्थान को गई। अब मैं उसके वचन से विश्वास प्राप्त करने के लिये शकुन देखने के हेतु अपने घर से निकला । ___ इतने में सहसा एक हर्षितचित्त पुरुष ने कहा कि-हे भद्र ! तेरे इस इष्ट कार्य की सिद्धि शीघ्र होओ । इस भांति शुभ शब्द होने से मैं प्रसन्न हो कर चलने को उचत हुआ । इतने ही में आकाश स्थित इस योगी ने मुझे उठा लिया और यहां ला रक्खा । इसलिये पुण्य से आपके दर्शन हों उसी से इसने मुझे प्राप्त किया है । अतः यह परम उपकारी है। अतएव हे मित्र ! इसे धर्म का उपदेश कर।
अब वह योगी भी प्रसन्न होकर बोला कि-जो उत्तम धर्म काली देवी ने स्वीकार किया है उसी की मुझे शरण हो और उसका बतलाने वाला जिनेश्वर मेरा देव है । तथा अपकारी पर