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भीमकुमार की कथा
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है । तब राजकुमार बोला कि-यह तो मानो शीत काल में अग्नि मिलने अथवा अंधकार में दीपक मिलने के समान हुआ कियहां भी मुझे पुण्य योग से सुसाधु की संगति मिली । इसलिये मैं अब शेष रात्रि इनके पास जाकर व्यतीत करू । तब देवी उसे मुनियों के पास ले गई। पश्चात् देवी बोली कि-मैं प्रातः काल मेरे कुटुम्बियों सहित मुनियों को वन्दना करने को आऊंगी यह कह कुमार का उपदेश स्मरण करती हुई अपने स्थान को गई।
_____ अब कुमार ने गुफा के द्वार के समीप बैठे हुए गुरु को नमन किया, तो उन्होंने उसे धर्मलाभ दिया। पश्चात् वह पवित्र भूमि पर बठ गया। तत्पश्चात् वह विस्मित हो गुरु को पूछने लगा कि-हे भगवन् ! आप इस भयानक प्रदेश में किसी के सहारे बिना और भूखे प्यासे रहकर कैसे निर्भय रह सकते हो ? कुमार के इस प्रकार पूछने पर गुरु जवाब देते ही थे कि इतने में कुमार ने आकाश से आती हुई एक भुजा देखी।
वह अत्यन्त लम्बी और कृष्णता से चमकती हुई आकाश से नीचे आती हुई शोभने लगी । वह आकाश लक्ष्मी की वेणी के समान मनोहर लावण्य-युक्त थी। वह चंचल और भयानक थी। अति कठिन थी और रक्त-चंदन का लेप की हुई थी जिससे मानो भूमि पर पड़ी हुई यम की जीभ हो वैसी प्रतीत होती थी वह आश्चर्य जनक भुजा शीघ्र वहां आई । तब मुनिगण व कुमार निर्भय होकर उसे देखते रहे । वह आकर तुरन्त कुमार की तलवार को दृढ़ता से मुट्ठी में लेकर वापस लौटी । यह भुजा किसको होगी अथवा यह मेरी तलवार को क्या करेगी ? सो मैं स्वयं जाकर देखू तो ठीक। यह विचार करके कुमार शीघ्र उठा