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भीमकुमार की कथा
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____ तब राजकुमार बोला कि-तू सत्य बात कहता है, किन्तु मैंने दाक्षिण्यता से उससे ऐसा करना स्वीकार किया है। स्वीकार को हुई बात को पूर्ण करना यह सत्पुरुषों का महान् व्रत है । क्योंकि देखो ! चन्द्रमा अपने देह को कलंकित करने वाले शशक को भी क्या त्याग देता है ? ___जो मनुष्य अपने धर्म में भलीभांति दृढ़ हो, उसे कुसंग क्या कर सकता है ? विषधर ( सर्प) के मस्तक में रहने वाली मणि क्या विषम विष को नहीं हरती है ? __ मन्त्रीकुमार बोला कि-जो तुम स्वीकार किये हुए को भलीभांति पालते हो तो पूर्व में अंगीकार किये हुए निर्मल सम्यक्त्व ही का पालन करें। तथा सर्प की मणि तो अभावुक द्रव्य है
और जीव तो भावुक द्रव्य है। इसलिये ठीक २ विचार करते हुए तुम्हारा दिया हुआ दृष्टान्त व्यर्थ है । इस प्रकार योग्य युक्तियों से उसके समझाने पर भी राजकुमार ने उक्त लिंगी की ओर आकर्षित होकर मानगुण से उसे न छोडा।
उक्त दिन आने पर कुमार अपने सेवकों की नजर चुका कर तलवार लेकर कापालिक के साथ रात्रि को स्मशान.में आ पहुंचा। अब योगी वहां मण्डल बनाकर, मन्त्र देवता को बराबर पूज कर कुमार का शिखा बंध करने को उठा।
तब कुमार बोला कि-मेरा सत्वगुण ही मेरा शिखा बंध है, अतः तू तेरा काम किये जा और मन में बिलकुल न डर । यह कह वह ऊंची की हुई तलवार के साथ उसके पास खड़ा रहा । तब कापालिक विचार करने लगा कि कुमार का सिर लेने के लिये शिखाबंध का ढोंग तो व्यर्थ गया। अतः अब बल पूर्वक