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पर हितार्थकारिता गुण पर
पश्चात् राजा यतीश्वर को नमन करके स्वस्थल को गया और गुरु भी भव्य जनों को बोध देने के लिये अन्य स्थल में बिहार करने लगे ।
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एक समय कुमार अपने घर मित्र के साथ बैठा हुआ सूरि के गुणों का वर्णन कर रहा था। इतने में छड़ीदार ने उसको नमन कर इस प्रकार विनंती की ।
हे देव ! एक मनुष्य की खोपडियों की माला धारी, बलिष्टाङ्ग कापालिक आपके दर्शन करने को आया है । कुमार ने कहाउसे अन्दर आने दो । तदनुसार उसने उसे अन्दर भेजा । वह योगी आशिर्वाद देकर उचित स्थान पर बैठ कर अवसर पा बोला कि - हे कुमार ! मुझ से शीघ्र ही एकान्त में मिलिए ।
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तब कुमार के कटाक्ष के संकेत द्वारा सेवकों को दूर करने पर योगी बोला कि - हे कुमार ! भुवनक्षोमिनी नामक एक उत्तम विद्या मेरे पास है । उसकी मैं ने बारह वर्ष पर्यन्त पूर्व सेवा की है । अब कृष्ण चतुर्दशी के दिन उसे स्मशान में साधना चाहता हूँ । इसलिये तू मेरा उत्तर साधक होकर मेरा परिश्रम सफल कर । तब कुमार ने परोपकार करने में आसक्त होने से उक्त बात स्वीकार कर ली ।
पश्चात् कुमार ने उक्त योगी को कहा कि वह रात्रि तो आज से दश दिन आने वाली है । इससे आप अपने स्थान को जाइये। योगी ने कहा कि मैं तब तक तेरे पास ही रहूंगा । तदनुसार कुमार के स्वीकार करने पर वह कुमार के पास ही बैठने सोने लगा ।
यह देख राजकुमार को मन्त्रीसुत कहने लगा कि - हे मित्र ! इस पाखंडी से परिचय करके तू अपने सम्यक्त्व को क्यों सातिचार - दूषित करता है ?