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कृतज्ञता गुण पर
से इस नगर में आ गया। जिसने इस अनेक रचनाओं से युक्त नगर को देखा। उसने हे वत्स ! मानो अखिल चराचर विश्व देख लिया।
मैंने कहा कि-हे माता ! जो ऐसा है तो मुझे सारा नगर बता तदनुसार उसने मुझे सब दिखाया । वहां देखते २ एक जगह मैने एक दूसरा पुर ( मोहल्ला ) देखा । तथा वहां एक विशाल पर्वत देखा व उसके शिखर पर एक और भी पुर देखा तब मैंने कहा कि-हे माता ! इस अन्दर के पुर का क्या नाम है ? तथा इस पर्वत व इसके शिखर पर दीखते हुए पुर का क्या नाम है ? - वह बोली कि हे वत्स ! यह सात्विकमानस नामक पुर है और उसमें यह विवेक नामक पर्वत है और इसका यह अप्रमत्तत्व नामक शिखर है। यह जगद्विख्यात जैन नामक महानगर है, तू तो सर्व सार समझता है अतः क्यों पूछता है हे तात ! वह इस प्रकार स्पष्ट वाणी से मुझे कहने लगी । इतने में वहां एक अन्य बात हुई सो सुनिये ।।
मैंने एक सख्त प्रहार से मारा हुआ व कैद करके ले जाता हुआ होने से विह वल बना हुआ तथा बहुत से लोगों से घिरा हुआ राज बालक देखा। मैंने कहा कि-यह बालक कौन है ? किस लिये वह सख्ती से पीटा गया है । कहां ले जाया जा रहा है । और उसके आसपास चलने वाले कौन है ? . .
माता बोली कि-हे वत्स ! इस महा पर्वत में चारित्र धर्म का नमराजा है । उसका यतिधर्म नामक पुत्र है। उक्त यतिधर्म का यह संयम नामक महा बलशाली पुरुष है । उसको महा