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विमलकुमार की कथा
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उस समय बड़ी धूमधाम से उसका आगमनोत्सव किया गया व उसने घ्राण के साथ बुध और मंद की मित्रता जान ली। तब विचार ने एकान्त में पिता को कहा कि-हे तात ! घाण के साथ आपको मित्रता रखना अच्छा नहीं । उसका कारण सुनिये-- ___ उस समय मैं आपको व मेरी माता को पूछे बिना ही घर से निकल गया और देशों को देखने के लिये अनेक देशों में फिरा। ___ एक समय मैं भवचक्र नामक महानगर में आ पहुँचा । वहां राजमार्ग में मैंने एक उत्तम स्त्री को देखा । उसे देखकर मैं प्रमोद से रोमांचित हो गया क्योंकि अपरिचित परन्तु श्रेष्ठ व्यक्ति को देखकर भी चित्त में प्रेम आ जाता है। वह स्त्री भी मुझे देखकर मानो सुख सागर में पड़ी हो अथवा अमृत से सींची गई हो अथवा राज्य पाई हो वैसे हर्षित हुई । पश्चात् मैंने प्रणाम किया तो उसने आशीष देकर पूछा कि तू कौन है ? तो मैंने भी कहा कि मैं धिषणा और बुध का पुत्र हूँ। हे माता ! मैं माता पिता को पूछे बिना देश देखने की इच्छा से यहां आया हूँ। तब वह मुझ से भेट करके हर्षाश्रु पूर्ण नेत्र कर कहने लगी
हे निर्मलकुमार ! मैं धन्य व कृतकृत्य हूँ कि मैंने तुझे आंखों से देखा । क्योंकि हे वत्स ! तू मुझे नहीं पहिचानता है। कारण कि तू छोटा था तब मैं तुझे छोड़कर चली गई थी । किन्तु मैं बुध राजा की सर्व कार्यों में मान्य व धिषणा की सखी हूँ। मेरा नाम मार्गानुसारिता है। अतः तू मेरा भानजा (भागिनेय) होता हे । तू ने बड़ा ही उत्तम किया कि-देश देखने की इच्छा