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चिमलकुमार की कथा
तब उद्यान पालकों ने शीघ्र ही राजा को बधाई दी। जिससे वह विमल तथा विद्याधर आदि को साथ लेकर गुरु को वन्दन करने के लिये आया । वह तीन प्रदक्षिणा दे परिजन सहित भक्ति से रोमांचित अंगवाला हो गुरु के चरण छूकर उचित स्थान में बैठ गया।
अब राजा गुरु का जगत् को आनन्दकारी रूप देखकर विस्मित हो निष्कपट पूर्वक बोला कि-हे भगवन् ! ऐसा राज्यपद योग्य रूप होते हुए आपने किस वैराग्य से यह दुष्कर व्रत ग्रहण किया है।
तब वृहस्पति तुल्य बुद्धिमान् यतीश्वर उस बात से उनको विशेषतः प्रतिबोध होगा यह सोचकर इस प्रकार बोले--
हे राजन् ! चंद्र किरण समान (श्वेत) जिनमंदिरों से सुशोभित और अनेक रचनाओं का धाम धरातल नामक नगर है । वहाँ शत्रु रूप वन को जलाने के लिये अग्नि समान शुभ विपाक नामक राजा है और उसकी सदान भोगा ( सदैव आकाश गामिनी) देवी के समान सदान भोगा ( दान भोग करने वाली) निजसाधुता नामक रानी है।
उनको वास्तविक गुणशाली और केतकी के पत्र समान पवित्र चारित्र्य वाला बुध नामक पुत्र हुआ । उसने युवावस्था प्राप्त करके शुभाभिप्राय राजा की धिषणा नामक पुत्री से जो कि-स्वयंवर से उसके घर आई थी, पाणिग्रहण किया ।
उस राजा का अशुभविपाक नामक दूसरा भाई था । उसकी परिणति नामक स्त्री थी और मंद नामक उसका पुत्र था । बुध