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विमलकुमार की कथा
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और मित्र है। तू ही मेरा देव और परमात्मा है और तू ही मेरा जोव है । क्योंकि तूने देव मनुष्य के सुख का कारणभूत
और पापतिमिर को दूर करने के लिये सूर्य समान यह युगादीश्वर प्रभु का बिंब मुझे बताया है । व उसको बताते हुए तूने मुझे सुगति का मार्ग ही बताया है तथा दुःखजाल को नष्ट किया व इस प्रकार परम सौजन्य भाव बताया है।
विद्याधर बोला कि- मैं इसका कुछ भी परमार्थ नहीं समझा। तब विमल बोला कि-मुझे जातिस्मरण हुआ है। मैंने पूर्वभव में अनेकबार जिन बिंब को वन्दन किया है व सम्यक् ज्ञान, दर्शन व चारित्र का पालन किया है, तथा मैत्री-प्रमोद-करुणा
और माध्यस्थ गुणों की भावना की है, इत्यादि सम्पूर्ण वृत्त मुझे जातिस्मरण से याद आता है । इसलिये हे भद्र ! तूने मुझे ऐसा किया है कि- जितना कोई परमगुरु करते हैं। यह कहकर कुमार विद्याधर के चरणों में गिर गया।
तब विद्याधर ने कहा कि इतनी भक्ति का काम नहीं । यह कह कुमार को उठा कर व उसे साधर्मिक मान कर प्रणाम करके विनय पूर्वक कहा कि-हे नरेन्द्रनंदन ! मेरा सर्व मनोरथ सफल हुआ है कि-जो तुझे जिनेश्वर भगवान पर ऐसी भक्ति उत्पन्न हुई है। हे कुमार ! तू जो इतना अधिक हर्ष करता है सो योग्य ही है । कारण कि-सजन दुःख से मुक्ति पाने के कार्य के अतिरिक्त अन्य कार्य में लीन नहीं होते। ___ कहा भी है किः-अज्ञान से अंधे पुरुष स्त्रियों के चंचल कटाक्ष से आकर्षित होकर काम में आसक्त होते हैं। अथवा पैसा कमाने में लीन रहते हैं किन्तु ज्ञानी विद्वान जन का चित्त तो सदैव मोक्ष सुख ही में निमग्न रहता है। क्योंकि हाथी छोटे