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कृतज्ञता गुण पर
कह कर, समझा कर, बताकर उसमें उनको स्थापित करे तभी माता पिता का यथोचित बदला चुकाया गिना जाता है। ___ हे आयुष्यमान श्रमणों ! कोई महर्धिक पुरुष किसी दरिद्री को सहारा देकर ऊंचा करे, तब दरिद्री ऊंचा चढ़कर भी आगे पीछे बहुत ही बुद्धिमान होकर रहे। इतने में वह महर्धिक किसी समय दरिद्री होकर उक्त पूर्व के दरिद्री के पास आवे तब वह दरिद्री उक्त श्रेष्ठ को अपना सर्वस्व भी अर्पण करदे, तो भी उसका प्रतिकार नहीं कर सकता।
किन्तु जो वह दरिद्री उक्त स्वामी को केवलिभाषित धर्म कह कर, समझा कर, बताकर उसमें स्थापित करे तो उसका प्रतिकार कर सकता है। ___ कोई पुरुष उस प्रकार के श्रमण वा ब्राह्मण से एक मात्र भी आर्य धार्मिक सुवचन सुनकर कालक्रम से मृत्युवश हो किसी भी देवलोक में देवतापन से उत्पन्न हो तब वह देव उक्त धर्माचार्य को दुष्काल वाले देश से सुकाल वाले देश में ले जा रक्खे वा अटवी (वन) में से निकाल कर बस्ती वाले प्रदेश में लावे अथवा दीर्घ काल से रोग पीड़ित को रोग मुक्त करे, तो भी वह धर्माचार्य का बदला नहीं चुका सकता।
परन्तु जो वह उक्त धर्माचार्य को केवलि भाषित धर्म कह कर, समझा कर, बताकर उसमें उनको स्थापित करे, तभी बदला चुका सकता है।
बाचक शिरोमणि उमास्वाति ने भी कहा है कि इस लोक में माता, पिता, स्वामी तथा गुरु ये दुष्प्रतिकार हैं। उसमें भी गुरु तो यहाँ व परभव में भी अतिशय दुष्प्रतिकार ही है।