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वृद्धानुगत्व गुण पर
तब राजा ने यह बात सुबुद्धि अमात्य, रानी, मध्यमकुमार तथा सामन्तों को कही। ____ तो निधान के समान महान् पुरुषों की संगति के फल
भी अचिन्त्य होने से सब को चारित्र लेने का परिणाम हुआ । जिससे वे बोले कि-हे राजन् ! आपने बहुत ही अच्छा कहा ।
आप जैसे को यही उचित है । कारण कि-इसी संसार में विवेकी जनों के लिये अन्य कुछ भी उत्तम नहीं है। ___ हे प्रभु ! हम भी यही करना चाहते हैं, यह सुनकर, मोर जैसे मेघ-गर्जना सुनकर प्रसन्न होता है, वैसे ही राजा भी प्रसन्न हुआ। तदनंतर राजा सुलोचन को राज चिन्ह दे, राज्य पर स्थापित कर, उन सब के साथ जिनमंदिर में आया। ___ वहां जिनेश्वर की पूजा कर उन्होंने अपना अपना अभिप्राय गुरु को कहा। तब गुरु बोले कि-हे महाभाग ! तुम बहुत अच्छा करते हो । पश्चात् गुरु ने उनको सिद्धान्त में कही हुई विधि के अनुसार अपने हाथ से दीक्षा देकर, इस प्रकार शिक्षा दी
जंतुओं को इस जगत् में चार परम अंग मिलना अति दुर्लभ है । एक मनुष्यत्व, दूसरा श्रवण, तीसरी श्रद्धा और चौथा संयम में उत्तम वीर्य । इस सकल सामग्री को बड़ी कठिनता से तुमने प्राप्त की है । इसलिये अब तुमको लेशमात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिये। ___ तब वे सब नतमस्तक हो सूरि महाराज के सन्मुख बोले कि-आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, हम ऐसा ही करना चाहते हैं। आचार्य ने हर्षित हो उन सब को स्थविर ऋषियों के सुपुर्द किये व मदनकदली साध्वी को आर्याओं के सुपुर्द करी।