________________
२०६
वृद्धानुगत्व गुण पर
लोकानुवृत्ति से वहां आ पहूँचा, और परदे के पीछे खडे रहकर बाल का सब वर्णन सुना । तब वह उसे कहने लगा कि-हे भाई! मैंने तुझे प्रथम ही से सावधान किया था कि- यह स्पर्शन पापिष्ट
और सकल दोषों का घर है। __ बाल बोला कि- अभी भी जो उस दीर्घ नेत्र वाली, कोमलाङ्गी स्त्री को पाऊं तो यह सर्व दुःख भूल जाऊ । यह सुन मनीषी विचारने लगा कि- खेद की बात है कि- यह बिचारा बाल काले नाग से डसे हुए मनुष्य की भांति उपदेश मंत्र को उचित नहीं। ___ कहा है कि-स्वाभाविक विवेक यह एक निर्मल चक्षु है,
और विवेकियों की संगति यह दूसरी चक्षु है । जगत् में जिसको ये दो चक्षुएं नहीं होती उसे परमार्थ से अंधा ही समझना चाहिये । अतएव ऐसा पुरुष जो विरुद्धमार्ग की ओर चले, तो, उसमें उसका क्या दोष है ? ___ अब मनीषि ने मध्यमबुद्धि को उठाकर कहा कि क्या इस बाल के पीछे लगे रहकर क्या तुझे भी विनष्ट होना है ? तब मध्यम बुद्धि पद्म कोश के समान अंजलि जोड़कर मनीषि को कहने लगा कि-हे पवित्र बन्धु ! मैं आज से इस बाल की संगति छोड़ दूगा । अब से मैं वृद्धमार्ग ही का अनुसरण करूंगा कि जिससे सकल क्लेशों को जलांजली देने में समर्थ हो जाऊ? ___जो मैं तेरे समान प्रथम ही से वृद्धानुग होता तो, हे भाई ! मैं ऐसी क्लेशमय दशा को नहीं प्राप्त होता । जो सदैव वृद्धानुगामी रहते हैं, उनको धन्य है ? तथा वे ही पुण्यशाली हैं, अथवा यह कहना चाहिये कि- वृद्धानुगामित्व, यह सतपुरुषों का स्वयं सिद्ध व्रत ही है।