________________
मध्यमबुद्धि की कथा
२०३
वाला मध्यम बुद्धि लोकोपवाद से डरकर उसको कहने लगा किहे भाई ! तुझे ऐसा लोकविरुद्ध और कुल को दूषण लगाने वाला अगम्य गमन नहीं करना चाहिये। तब बाल बोला कि- तू भी मनीषि की बातों में आ गया है। तब मध्यम बुद्धि ने विचार किया कि यह उपदेश के योग्य नहीं । इससे वह भी चुप हो रहा ।
एक समय वसंत ऋतु में बालकुमार मध्यमबुद्धि के साथ लोलावर उद्यान में स्थित कामदेव के मकान में गया। वहां उसने उक्त मकान के समीप मंद मंद प्रकाश वाला काम का वासमंदिर देखा । तब वह कौतुकवश मध्यम कुमार को द्वार पर बिठा कर स्वयं झट से उस घर के अन्दर घुस गया। वहां कोमल निर्मल तूलिका वाले कामदेव के पलंग पर स्पर्शन मित्र और अकुशला माता के दोष से वह हीनपुण्य सो गया।
इतने में उसो नगर के निवासी शत्रुमर्दन राजा की रानी मदनकंदली वहां आकर व उसे शय्या पर सोया हुआ कामदेव जान कर भक्ति से उसके सर्वाङ्ग को स्पर्श करके पूजने लगी । इस प्रकार रानी कामदेव की पूजा करके अपने घर को गई। इधर बाल कुमार उसके संस्पर्श के योग से नष्टचेतन सा हो गया । वह सोचने लगा कि- यह स्त्री मुझे किस प्रकार प्राप्त हो, इस प्रकार चिन्ता करता हुआ वह थोड़े जल में जैसे मछली तड़पती है वैसे दुःखित हुआ । बाल क्यों देरी करता है ऐसा सोचता हुआ मध्यम बुद्धि कामदेव के मंदिर में गया और बाल को उठाया। जितने में कुछ बोलता नहीं, इतने में उस बालक के समान चेष्टा करते हुए बाल कुमार को उसी स्थान के एक व्यंतर ने पकड़ा । उसने उसे पलंग पर से भूमि पर पटक दिया । सर्वांग में ताड़ना की और बाहिर के लोगों में उसका सब वृत्तान्त कहा। तब मध्यम बुद्धि तथा