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वृद्धानुगत्व गुण पर
अतः मेरा सदा सुख चाहने वाली माता से पूछें यह सोचकर उसने माता को सम्पूर्ण वृत्तान्त कहकर पूछा कि अब मैं क्या करू' ।
वह बोली कि - हे नन्दन ! अभी तो तू मध्यस्थ रह । समय पर जो बलवान और निर्दोष पक्ष जान पड़े उसी का आश्रय लेना । क्योंकि - दो भिन्न भिन्न कार्यों में संशय खड़ा होने पर उस जगह काल विलम्ब करना चाहिये । इस विषय में दो जोड़लों (दम्पतियों ) का दृष्टान्त है ।
एक नगर में ऋजु नामक राजा था । उसकी प्रगुणा नामक पत्नी थी । उसका मुग्ध नामक पुत्र था और अकुटिला नामक उसकी बहू थी ।
उक्त मुग्ध और अकुटिला एक समय वसंत ऋतु में सुवर्ण के सूपड़े (छाबड़ी) लेकर अपने घर के समीप के उद्यान में फूल चुनने गये। वे पहले कौन सूपड़ा भरे इस आशय से फूल एकत्र करते हुए एक दूसरे से दूर दूर होते गये ।
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इतने में वहां क्रीडा करता हुआ एक व्यन्तर दंपती ( जोड़ा ) आया । उनमें जो देवी थी उसका नाम विचक्षणा था और देव का नाम कालज्ञ था ।
दैवयोग से वह देव अकुटिला पर मोहित हो गया और देवी मुग्ध पर मोहित हो गई । तब देव अपनी प्रिया को कहने लगा कि - हे प्रिये ! तू आगे चल । मैं इस राजा के उद्यान में से पूजा के लिये फूल लेकर शीघ्र ही तेरे पीछे पीछे आता हूँ ।
पश्चात् वह देव स्त्री के संकेत को अपने विभंग ज्ञान से समझकर, मुग्ध का रूप धारण कर सूपड़े को फूल से भर अकुटिला के समीप आ कहने लगा कि - हे प्रिये ! मैं ने तुझे