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विशेषज्ञता गुण पर
विशेष का ज्ञाता, राज्यभार की चिंता रखने वाला, धर्म कार्य तत्पर, राजा के मन रूप मानस में हंस समान रमण करने वाला सुबुद्धि नामक महा मंत्री था।
उक्त चंया नगरी के बाहिर ईशान कोण में एक गहरी खाई थी। उसमें मरे हुए, सड़े हुए, गले हुए, दुर्गन्धित, छिन्न भिन्न शव डाले जाते थे। जिससे वह मृत शवों की त्वचा, मांस और रुधिर से परिपूर्ण होकर भयानक अशुचि मय हो गई थी। उसमें मरे हुए सर्प, कुत्ते और बैलों के कलेवर डाले जाते थे। जिससे वह दुर्गन्धित पानी युक्त हो गई थी।
किसी समय राजा भोजन मंडप में दूसरे अनेक राजा (मांडलिक), ईश्वर (धनाढ्य), तलवर (कोतवाल), कुमार, सेठ, सार्थवाह आदि के साथ सुखासन पर बैठ कर अशन-पान योग्य, आनन्द जनक और श्रेष्ठ वणे-गंध-रस-स्पर्श युक्त आहार को हर्ष से खाने लगा। खाने के अनन्तर भी उक्त आहार के लिये विस्मित हो राजा अन्य जनों को कहने लगा कि- अहो! यह आहार कैसा मनोज्ञ था ? तब वे राजा का मन रखने को बोले कि वास्तव में वैसा ही था । तब राजा सुबुद्धि मंत्री को भी इसी प्रकार कहने लगा। किन्तु सुबुद्धि राजा को इस बात की ओर बेपरवाह रहकर चुप बैठा रहा। तब राजा ने वही बात दो-तीन बार कही।
तब सुबुद्धि मंत्री बोला कि- हे स्वामिन् ! ऐसे अति मनोज्ञ आहार में भी मुझे लेश मात्र भी विस्मय नहीं होता । कारण किशुभ पुद्गल क्षण भर में अशुभ हो जाते हैं और अशुभ पुल क्षण भर में शुभ हो जाते हैं तथा शुभ शब्द वाले, शुभ रूप वाले, शुभ गन्ध वाले, शुभ रस वाले और शुभ स्पर्श वाले पुद्गल भी प्रयोग से अशुभ हो जाते हैं।