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सुदीर्घदर्शीत्व गुण पर
दूसरी का उसके आचरणानुसार मैं भोगवती नाम रखता हूँ और उसने रांधने, खांडने तथा पीसने दलने का काम करना चाहिये।
तीसरी ने चांवल के दाने सम्हाल कर रखे, इससे उसका रक्षिता नाम रखता हूँ और उसे मणि, सुवर्ण, रत्न आदि भंडार सम्हालने का कार्य करना चाहिये।
चौथी ने चावल के दाने बोवाये इसलिये उसका नाम रोहिणी रखता हूँ। वह पुण्यशालिनी होने से इन तीनों बहूओं पर देखरेख रखने वाली रहे व इसकी आज्ञा का सबको पालन करना पड़ेगा।
इस प्रकार दीर्घदर्शी होकर वह धन श्रेष्ठी कुटुम्ब को स्वस्थ कर निर्मल धर्म कर्म का आराधक हुआ। तथा इस विषय में ज्ञात धर्म कथा नामक छ? अंग में रोहिणी के ज्ञात में सुधर्म स्वामी ने बहुत विस्तार से इस प्रकार दूसरा उपनय भी बताया है । जो धन श्रेठो सो तो गुरु जानो, जो ज्ञातिजन सो श्रमण संघ, जो बहूएँ सो भव्य जीव और जो चावल के दाने सो महाव्रत जानो। अब जैसे पहिलो उज्झिता नामक बहू ने चावल के दाने उज्झित करके दासीपन का महा दुःख पाया, वैसे कोई जीव कुकर्म वश सकल समीहित की सिद्धि करने वाले और भवसमुद्र से तारने वाले महाव्रतों को छोड़कर मरणादिक दुःख पाता है। और दूसरे कितनेक जीव दूसरी बहू के समान वस्त्र, भोजन
और यशादिक के लोभ से उन व्रतों को खाकर परलोक के लाखों दुःख पाने के योग्य होते हैं। तीसरे जीव रक्षिता नामकी बहू के समान उन व्रतों को अपने जीवन (प्राण) के समान संपादन करके सर्व ओर मान पाते हैं। और चौथे जीव रोहिणी नामकी