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सुपक्षत्व गुण पर
युगबाहु जिननाथ को अपने घर की ओर भिक्षा के लिये आते देखे। तब वह तुरत बत के आसन से उठकर सात आठ पग सन्मुख जाकर तीन प्रदक्षिणा देकर भूमि में सिर नमा उनको वन्दना करने लगा।
पश्चात् वह बोला कि- हे स्वामी ! मेरे यहां से आहार ग्रहण करके मुझ पर अनुग्रह करीए । तब द्रव्यादिक का उपयोग कर जिनराज ने हाथ चौड़ा किया। अब वह विजयकुमार हर्ष से रोमांचित हो, विकसित नेत्र और हंसते मुख कमल से परम भक्ति पूर्वक उत्तम आहार वहोरा कर अपने को कृतकृत्य मानने लगा। ___चित्त, वित्त और पात्र ये तीनों एक साथ मिलना दुर्लभ है । उसने उनको प्राप्त करके उस समय भगवान् को प्रतिलाभित किये । उसका यह फल है।
उसने उसीसे पुण्यानुबंधि पुण्य, उत्तम भोग, सुलभ बोधित्व और मनुष्य का आयुष्य बांधा। वैसे ही संसार को भी परिमित किया है। इस समय उसके वहां पांच दिव्य प्रगट हुए वे इस प्रकार कि- देव दु'दुभि बजने लगी। देवों ने वस्त्रों को, सोने की और पांच वर्ण के फूल की वृष्टि करी और आकाश में " अहो सुदान, अहो सुदानं” की उद्घोषणा की। ___तब वहां राजा आदि बहुत से लोग एकत्रित हुए । उन्होंने भी निरभिमानी विजयकुमार को हर्षित मन से प्रशंसा करी । पश्चात् वह लोकप्रिय विजय कुमार वहां चिरकाल तक भोग भोगकर समाधि से मरकर वह भद्रनंदी कुमार हुआ है।
तब गौतम स्वामी ने भगवान को पूछा कि- क्या यह श्रमण धर्म ग्रहण करेगा ? भगवान ने कहा कि- हां समयानुसार