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गुणरागित्व गुण पर
एक दिन वह सैंकड़ों सुभटों से भरे हुए सभा स्थान में बैठा था। इतने में सुवर्णमय दंडधारी द्वारपाल उसें इस प्रकार कहने लगा । हे देव ! आपके दर्शन के लिये एक चतुरवदन नामक मनुष्य बाहिर खड़ा है। तब कुमार ने कहा कि - उसे जल्दी अन्दर भेजो | तदनुसार वह उसे अंदर लाया । उसे अपने पिता का प्रधान जानकर कुमार ने उससे मिलकर माता पिता की कुशलता पूछी। उसने भी यथा योग्य उत्तर दिया किन्तु वह बोला कि आपके विरह से आपके माता पिता अश्र पूर्ण नेत्रों से जो दुःख भोग रहे हैं उसे तो सर्वज्ञ ही जानता है ।
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यह सुन खिन्न हो, कुमार शर राजा की आज्ञा ले बंधुमती सहित हाथी-घोड़े रथ और पैदल लेकर ( अपने नगर की ओर ) चला । यह खबर मिलते ही राजा विजयसेन महान् परितोष पाकर सामने आया । पश्चात् बड़े आडंबर के साथ कुमार ने नगर में प्रवेश किया । इसके अनन्तर उसने अपनी पत्नी सहित माता पिता के चरणों को नमन किया। उन्होंने मंगलमय आशीषों से इनको बधाई दी ।
अब सकल जनों को हर्ष देने वाले राजकुमार के दर्शन के लिये ही मानो आ रहा हो वैसे कुद के पुष्पों को प्रकट करने वाला हेमन्त ऋतु संप्राप्त हुआ । इस अवसर पर उद्यान पालकों ने आकर विनय सहित राजा को निवेदन किया किवहां श्री बिमलबोध नामक आचार्य पधारे हैं ।
यह सुन राजा ने उनको बहुत दान दिया । पश्चात् वह युवराज, नगर-जन सामन्त तथा रानियों सहित उच्च गंध हस्ती पर चढ़कर प्रौढ भक्ति पूर्वक उक्त यतीश्वर को नमन करने के लिये बड़े परिवार के साथ वहां आया ।