________________
गुणरागित्व गुण पर
यह क्या हुआ । इतने ही में उन्होंने देव समान कुमार को देखा । विद्याधर ने सोचा कि निश्चय यह कोई बंधुमती को लेने के लिये आया जान पड़ता है । जिससे वह हाथ में धनुष धारण कर कहने लगा।
रे बालक ! शीघ्र दूर हो । मेरे बाण रूप प्रज्वलित अग्नि में पतंग के समान मत गिर । तब राज कुमार हँसता हुआ कहने लगा कि- जो पुरुष कार्य करने में लिपट जाय उसीको ज्ञानीजन बालक कहते हैं । इसलिये बंधुमती को हरने से तू ही बालक है। यह बात तीनों जगत् में प्रसिद्ध है। इस प्रकार तेरे दुश्चरित्र ही से तू नष्ट प्रायः है । अतः तुझ पर क्या प्रहार करू । यद्यपि अब भी तु के भारी गवे है. तो तू हो प्रथम प्रहार कर।
तब कोप से दांत कटकटाकर विद्याधर बाण फेंकने लगा । कुमार ने विद्या के बल से अपने बाणों द्वारा उनको प्रतिहत किये। तब उसने अग्न्यस्त्र फेका । उसे कुमार ने जलास्त्र से नष्ट कर दिया । सर्पास्त्र को गरुड़ास्त्र से तथा मेघास्त्र को पवनास्त्र से नष्ट कर दिया । तब विद्याधर ने अग्नि की चिनगारियां बरसाता हुआ लोहे का गोला फेका । उसको कुमार ने वैसे ही प्रतिगोले से चूरचूर कर दिया।
इस प्रकार राज कुमार का महा पराक्रा देखकर बन्धुमती उस पर मोहित हो काम के वशीभूत हो गई व विद्याधर को कुमार ने बाणों से वेध दिया । तब तीव्र प्रहार से विधुर होकर विद्याधर सहसा भूमि पर गिर पड़ा व राजकुमार उसको पवन कर उसे सावधान कर कहने लगा। (हे विद्याधर ! ) तू