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पुरन्दरराजा की कथा
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कुमार बोला कि, हे देव ! ऐसा न बोलिये । कारण कहा है कि-गुरुजनों के मन की कृपा है वही सन्मान है । बाहरी आगत स्वागत तो कपटी भी करते हैं । तब राजा के आंख के संकेत से सूचित करने से श्रीनन्दन वह सर्व वृत्तान्त सुनाकर कुमार को इस प्रकार कहने लगा।
हे बुद्धिशाली ! नू विचार करके इस सम्बन्ध में कोई ऐसा उपाय कर कि जिससे हम सब लोग व राजा निश्चित हो । तब परकार्यरत कुमार इस बात को मान्य कर अपने स्थान को आया और विधिपूर्वक अपनी विद्या को स्मरण करने लगा।
विद्या प्रकट हुई। तब कुमार उसे पूछने लगा कि-राज पुत्री को किसने हरण की है ? तब वह कहने लगी कि वैताढ्य पर्वत में गंधसमृद्ध नामक नगर का स्वामी मणिकिरीट नामक विद्याधर है । वह नन्दीश्वर द्वीप की ओर जा रहा था । .
इतने में उसने यहां बंधुमती को देखा। जिससे कामातुर होकर वह उसे हरण करके धवलकूट पर्वत पर ले गया है और वहां उससे विवाह करने की तैय्यारी कर रहा है। अतएव इस विमान पर तू चढ़ ताकि मैं तुझे वहां ले जाऊ । यह सुन कुमार विमान पर आरूढ़ हुआ और उसने उसे वहां पहुँचाया ।
___ वहां उसने अश्र पूर्ण बन्धुमती को विवाह के लिये प्रार्थना करते हुए उक्त विद्याधर को देखकर ललकार कर कहा कि अरे - अरे ! तू सावधान होकर शस्त्र ग्रहण कर क्योंकि हे अदत्त कन्या को हरण करने वाले अब तेरा नाश होने वाला है। यह सुन विद्याधर तथा राजपुत्री चकित हो देखने लगे कि