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यशोधर की कथा
सकल जीवों से मित्रता रख, अधिक गुण वालों पर प्रमोद धर, दुःखो पर करुणा कर और अविनीत देखकर उदास रह । कारण कि - इस प्रकार अतिचार रहित व्रत नियम का पालन कर, अष्ट कर्म का क्षय करके थोड़े समय में परम पद प्राप्त किया जा सकता है ।
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तब हर्षित होकर राजा बोला कि - हे भगवान् ! क्या मेरे समान (व्यक्ति) भी व्रत लेने के योग्य हैं ? गुरु बोले कि - हे नरवर ! तो अन्य कौन उचित है ?
तब राजा ने अपने सेवकों को कहा कि- तुम जाकर मंत्रियों को कहो कि - कुमार को राज्याभिषेक करें । मेरे लिये तुम कुछ भी खेद न करो। मैं सुदत्त गुरु से दीक्षा लेता हूँ | तदनुसार उन्होंने भी जाकर मंत्रा आदि से यह बात कही ।
तब के रानियां, कुमार, कुमारियां तथा शेष परिजन लोग विस्मित हो शीघ्र उस उपवन में आये ।
वहां छत्र चामर का आटोप छोड़कर भूमि पर बैठे हुए राजा को जैसे-तैसे पहिचान कर वे गद्गद् कंठ से इस प्रकार कहने लगे कि - दाढ़ निकाले हुए सर्प के समान, पानी में घिरे हुए मदमत्त हाथी के समान और पिंजरे में पड़े सिंह के समान आप राज्य भ्रष्ट होकर क्या विचार करते हो ?
तब राजा ने उन सब को मुनि के वचन यथावत् कह सुनाये. जिसे सुन कुमार तथा कुमारी को जाति-स्मरण उत्पन्न हुआ ।
वे संसार से उद्विग्न हो, संवेग पाकर बोलने लगे कि हे तात ! भोगी (सर्प) के समान भयंकर भोगों से हमको कुछ भी काम नहीं । हम भी आपके साथ श्रमणत्व अंगीकार करेंगे । तब राजा बोला कि - जिसमें सुख हो वही करो ।