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दयालुत्व गुण पर
श्र
अब माता की प्रेरणा से राजा ने तलवार से वह मुर्गा मारा । तब माता ने कहा कि अब इसका मांस खा । तब वह बोला- हे माता ! विष खाना अच्छा परन्तु नरक के दुःसह दुःख का कारण भूत अनेक त्रस जीवों की उत्पत्ति वाला दुर्गन्धि युक्त अति बीभत्स मांस खाना अच्छा नहीं । तब यशोहरा यशोधरा बहुत प्रार्थना करी । जिससे राजा ने आटे के मुर्गे का मांस
!
ने
खाया ।
अब दूसरे दिन राजा कुमार को राज्य पर स्थापन करके दीक्षा लेने को तैयार हुआ । इतने में रानी ने कहा कि - हे देव ! आज का दिन रह जाइए। हे आर्य पुत्र ! आज का दिन पुत्र को मिले हुए राज्य के सुख का अनुभव करके मैं भी प्रव्रज्या ग्रहण करू ंगी। तब राजा विचार करने लगा कि यह पूर्वापर विरूद्ध क्या बात है ? अथवा कोई स्त्री तो जीवित पति को छोड़ देती है तो कोई मरते के साथ भी मरती है । अतः सर्प की गति के समान टेढ़े स्त्री चरित्र को कौन जान सकता है ?
इसलिये देखू । कि- यह क्या करती है ? यह सोचकर वह बोला कि ठीक है, तो ऐसा ही होगा। तब रानी विचार करने लगी कि जो मैं इनके साथ प्रव्रज्या नहीं लूंगी तो मुझ पर भारी कलंक रहेगा, परन्तु जो किसी प्रकार राजा को मार डालू व बाल पुत्र के पालनार्थ मैं उनके साथ नहीं मरू ं तो वह दोष नहीं
माना जायगा ।
यह सोचकर उसने नखरूपी सीप में रखा हुआ विष राजा को भोजन में दिया, जिससे तुरन्त राजा का गला घुटने लगा । तब विष प्रयोग जानकर विष वैद्य बुलाये गये, इतने में रानी ने सोचा कि- जो वैद्य आवेंगे तो सब उल्टा हो जावेगा । जिससे शोक