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लजालुत्व गुण पर
इस प्रकार जैसे जैसे वह विद्याधर उसकी स्तुति करने लगा, वैसे २ कुमार अति उद्विग्न होकर लज्जा से कंधा नमाता हुआ कुछ भी बोल न सका। तब उसको पुनः घाव में नमक डालने की भांति व विद्याधर खारी वाणी (तीक्ष्ण वचन) से कहने लगा कि जो तुझे मेरी स्त्री की इच्छा ( आवश्यकता) हो तो मैं यह चला।
तेरे समान महापुरुष को जो मेरी स्त्री काम आती हो तो फिर इससे अधिक कौनसा लाभ प्राप्त करना है ? इसलिये तू लेश-मात्र भी खेद न कर । यह कह कर विद्याधर उड़ गया। तब कुमार विचार करने लगा कि-अरे रे ! मैं बहुत पापी हो गया
और मैंने अपने निर्मल कुल को दूषित कर दिया । ___ हा देव ! विजयकुमार शरणागत की रक्षा न कर सका, इतने में भी तूतुष्ट नहीं हुआ कि जिससे पुनः तू मुझे पर-स्त्री से कलंकित कराता है। • लज्जावान् महापुरुषों को प्राण त्याग करना अच्छा परन्तु भ्रष्ट प्रतिज्ञ कलंकित मनुष्यों का जीवित रहना निरर्थक है । अत्यन्त पवित्र हृदया आर्या माता के समान गुण समूह की उत्पादक लज्जा का अनुसरण करते तेजस्वी-जन अपने प्राणों को सुख से त्याग देते हैं, परन्तु वे सत्यव्रती पुरुष अपनी प्रतिज्ञा नहीं छोड़ते।
इस प्रकार चिंता-ग्रस्त कुमार को कोई कान्तिवान देव अपने आभरण की प्रभा से संपूर्ण दिशाओं को प्रकाशित करता हुआ कहने लगा कि- हे कुमार ! तू खेद मत कर, परन्तु मेरा यह कल्याणकारी वचन सुन । तब कुमार बोला कि- मेरे कान तेरा बचन सुनने को तैयार ही है।