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क्षुल्लककुमार की कथा
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को भी मरवा डाला वह अब मेरे शील को निश्चय से बिगाड़ेगा। इसलिये मैं अब (किसी भी उपाय से) शील रक्षण करू । यह विचार कर जिन वचन से रंगित यशोभद्रा आभरण साथ में लेकर साकेतपुर से झटपट एकाएक रवाना हुई। ___ वहां कोई वृद्ध षणिक बहुतसा माल लेकर श्रावस्ती नगरी की ओर जा रहा था। उससे मिली, उसने कहा कि मैं तेरी तेरे बाप के समान सम्हाल रक्खूगा । तदनुसार वह उसके साथ २ कुशल क्षेम पूर्वक श्रावस्ती को आ पहुँची। वहां अंतरंग वैरियों से अपराजित अजितसेन सूरि की मद रहित कीर्तिमती नामक महत्तरिका आर्या थी । उसको नमन करके भद्रआशया यशोभद्रा धर्मकथा सुनने लगी । पश्चात् अपना वृत्तान्त निवेदन करके उसने दीक्षा ग्रहण की।
वह गर्भवती थी यह उसे ज्ञात होते भी कदाचित् दीक्षा न दे इस विचार से उसने इस सम्बन्ध में महत्तरा को कुछ भी न कहा। काल क्रम से गर्भ के वृद्धि पाने पर महत्तरा उसे एकान्त में पूछने लगी । तब उसने उसे वास्तविक कारण बता दिया।
पश्चात् जब तक उसको प्रसूति हुई तब तक उसे छिपा कर रखा । बाद पुत्र जन्म होते, उसका नाम क्षुल्लककुमार रखा गया और किसी श्रावक के घर उसका लालन पालन हुआ।
तदनन्तर उसे योग्य समय पर शास्त्र विधि के अनुसार अजितसेन गुरु ने दीक्षित किया और यति जन को उचित सम्पूर्ण आचार सिखाया । क्रमशः क्षुल्लक मुनि अति रूपवान यौवन को प्राप्त कर विषयों से लुभाते हुए इन्द्रिय दमन में असमर्थ होगए। जिससे वे स्वाध्याय में मन्द होकर संयम का पालन करने में