SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावार्थ--कोई अतितार्किक (शुष्कबुद्धिवादी यानी बौद्धदर्शनकार) कहते हैं कि प्रोदन (चांवल) आदि की भांति मांस खाना चाहिये, चूकि वह प्राणी का अंग है-[१]. भक्ष्याभक्ष्यव्यवस्थेह शास्त्रलोकनिबन्धना। सर्वेव भावतों यस्मात्तस्मादेतदसाम्प्रतम् ॥२॥ भावार्थ-किन्तु उक्त हेतु उचित नहीं है । इसका कारण ह हैकि सभी प्रकार की भक्ष्याभक्ष्य, पेयापेय आदि की व्यवस्थाएँ वास्तविक रीति से शास्त्र एवं लोक व्यवहार के माधार पर चलती है [२]. तत्र प्राण्यङ्गमप्येकं भक्ष्यमन्यत्तु नो तथा । सिद्धं गवादिसत्क्षोररुधिरादौ तथेक्षणात् ॥३॥ भावार्थ--पुनः लोक व्यवहार में भी प्राणियों के अंग के विषय में भी कोई अंग भक्ष्य और कोई अंग अभक्ष्य रूप से प्रसिद्ध है क्योंकि गाय प्रादि के शुद्ध दूध, खून, अस्थि आदि में भक्ष्याभक्ष्यत्व दीखता है [३]. प्राण्यङ्गत्वेन न च नोऽभक्षणीयमिदं मतम् । किन्त्वन्यजीवभावेन तथा शास्त्रप्रसिद्धितः ॥४॥ भावार्थ-पुन, मांस प्राणी के अंगरूप होने के कारण अभक्ष्य है, है, ऐसा हमारा मानना नहीं। मांस स्वयं अन्य जीवरूप है, अतः अभक्ष्य है । आगमशास्त्रों का भी यही कथन है--[४]. भिक्षुमांसनिषेधोऽपि न चैवं युज्यते क्वचित् । मस्थ्याद्यपि च भक्ष्यं स्यात्प्राण्यङ्गत्वाविशेषतः ॥५॥
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy