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________________ दोक्षा मोक्षार्थमाख्याता ज्ञानध्यानफलं च स। शास्त्र उक्तो यतः सूत्र शिवधर्मोत्तरे ह्यदः। ॥२॥ "पूजया विपुलं राज्यमग्निकार्येण सम्पदः । . तपः पापविशुद्धयर्थं ज्ञानं ध्यानं च मुक्तिदम्" ॥३॥ युग्मम. भावार्थ--दीक्षा मोक्ष के लिए कही है और मोक्ष को भी शास्त्र में ज्ञानध्यान का फल बताया है; क्यों कि 'शिवधर्मोत्तर' नाम के शव धर्मग्रन्थ के एक सूत्र में कहा गया है, "द्रव्यपूजा से विशाल साम्राज्य मिलता है, (द्रव्य) अग्नि-कार्य से समृद्धियां सुलभ बनती है; तप पाप की विशुद्धि के लिये है एवं ज्ञान एवं ध्यान मोक्षदायक हैं"--[२-३] पापं च राज्यसम्पत्सु सम्भवत्यनघं ततः । न तद्धत्वोरुपादानमिति सम्यग्विचिन्त्यताम् ॥४॥ भावार्थ--"साम्राज्य एवं समृद्धि की उपस्थिति में पाप संभव हैं, इसलिये साम्राज्य एवं समृद्धि के हेतु रूप अग्निकारिका का सेवन अर्थात् पाचरण निरवद्य (निर्दोष) नहीं है" ऐसा सम्यक रीति से विचारना चाहिए-[४] कदाचित किसी को यह शंका हो कि जैसे राज्य आदि से पाप का संभव है वैसे दान आदि गुणों का भी संभव है और उन दानादि गुणों से पाप का शोधन होता है, इस हेतु (द्रव्य) पूजा और (द्रव्य) अग्नि कारिका करनी चाहिए। इसके समाधान हेतु अष्टककार महर्षि फरमाते हैं :--
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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