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________________ ४ भावार्थ - जिस प्रकार उत्तम वैद्य के वचन से याने सुवैद्य के वचनानुसार आचरण करने से रोग का नाश होता है, वैसे ही महादेव के वचन से अर्थात् उनके वचन के अनुसार उनकी प्रज्ञा के अनुसार वर्तन करने वाला निश्चय ही अपने संसार का क्षय करता है और उसके भव भ्रमण का भन्त हो जाता है । एवम्भूताय महादेवाय सततं शान्ताय, कृतकृत्याय धमते । सम्यग्भक्त्या नमोनमः ॥ ८ ॥ भावार्थ- - उक्त विशिष्ट गुरणगरिष्ठ, शान्त, कृत-कृत्य, बुद्धिमान महादेव को सम्यक् भक्ति से हमेशा नमस्कार हो । [ ८ ] स्नानाष्टकम् [ २ ] द्रव्यतो भावतश्चैव द्विधा स्नानमुदाहृतम् । बाह्य माध्यात्मिकं चेति, तदन्यैः परिकीर्त्यते ॥ १ ॥ भावार्थ -- स्नान दो प्रकार के हैं - (१) द्रव्य स्नान । (२) भाव स्नान । अन्य धर्ममतावलम्बियों ने भी इसी के अनुक्रम से (१) वाह्य स्नान एव (२) आध्यात्मिक स्नान कहा है । [१] जलेन देह देशस्य, क्षणं यच्छुद्धिकारणम् । प्रायोऽन्यानुपरोधेन, द्रव्यस्नानं तदुच्यते ॥ २ ॥ भावार्थ - जलसे किया गया स्नान क्षणिक देहशुद्धि का कारण बनता है । वह जलस्नान प्रायः एक दूसरे नये मैल को रोकने में असमर्थ होने के कारण द्रव्य स्नान कहा गया है [२]
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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