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________________ बाती है वैसे ही प्रात्मज्ञान भी आत्मा के बाहर जाय, तो इसमें कोई दोष नहीं है। शंकाकार की शंका का समाधान आचार्यश्री कर रहे हैं यच्च चन्द्रप्रभाद्यत्र ज्ञातं तज्ज्ञातमात्रकम् । प्रभा पुदगलरूपा यत्तद्धर्मों नोपपद्यते ॥६॥ भावार्थ--चन्द्रप्रभा आदि प्रकाशक वस्तुओं का उदाहरण जो यहां पर दिया गया है, वह उदाहरण मात्र है मतलब उसमें प्रकाशकता रूप धर्म के साधर्म्य के अतिरिक्त दूसरे धर्मों का साधर्म्य नहीं है क्योंकि पुद्गल द्रव्य रूप चन्द्रप्रभा ज्ञानप्रभा की समता नहीं कर सकती-१६). मतः सर्वगताभासमप्येतन्न यदन्यथा । युज्यते येन सन्न्यायात्संवित्त्यादोऽपि भाव्यताम् ॥७॥ भावार्थ-पुनः चन्द्रप्रभा का प्रकाश सर्वत्र नहीं फैलता, इस कारण जैसा तुम कहते हो वैसे संपूर्ण साधर्म्य वाले इस उदाहरण से केवलज्ञान सर्वत्र सुविस्तृत प्रकाश वाला अर्थात् सर्वप्रकाशक है ऐसा भी नहीं सिद्ध होगा। वह दूसरे प्रकार से अर्थात् दृष्टान्तों के साथ आंशिक साधर्म्य को स्वीकार करने पर ही घटेगा, अतः चन्द्र-चन्द्रप्रभा के दृष्टान्त को भी सन्नीति द्वारा अपनी बुद्धि से विचारना चाहिये--[७]. नाद्रव्योऽस्ति गुणोऽलोके न धर्मान्तौ विभुन च । आत्मा तद्गमनाद्यस्य नाऽस्तु तस्माद्यथोदितम् ॥८॥ भावार्थ--न्याय का सिद्धान्त है कि कोई भी गुण द्रव्यरहित नहीं होता।' मालोक में धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकाय नहीं है,
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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