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(३५) थयो. अने राजा कहेवा लाग्यो जे नबुं कस्खु जे महारा पुत्रने जितशत्रु राजायें जीवितव्यनी पेरें राख्यो, में मंदनागीयें तो अतिदाननुं दूषण आपीने सजनना कहेवाथी पुत्रने परदेशे काहाढ्यो. एम कही ते राजाना सेवकने वस्त्रादिक श्रापी संतोषीने विसर्जन कस्यो. सेवके श्रावी राजानी बागल सर्व समाचार संजलाव्यो, राजा प्रमुदित थयो. जमा तथा दीकरीने जश् पोतानो अपराध खमाव्यो. अने कडं के दे ललितांगजी! तमारा जेवा गुणवंत को नथी, अने सजन सरखो पुर्गुणी पापी पण को नथी, माटे हवे हे कुमरजी ! तमें राज्यनो अंगी. कार करो. एम कही कुमरने राज्य थापी पोतें दीदा लश् देवलोके गयो.
पाबलथी ललितांगकुमर पण राज्यनी चिंताना करनार मंत्रीश्वरने सर्व कारभार सोपी पोतें सैन्य लाइ महोटी झिथी पिताने चरणे जनम्यो. पि. ता पण नेत्रने श्रानंदकारक एवा पुत्रनुं दर्शन पामीने जेम चंद्रमाना दर्शनथकी समुज्ने हर्ष थाय, तेम हर्षवंत थयो थको पुत्रने कदेवा लाग्यो के हे वत्स ! हवे अमें परलोक साधन करशुं ! श्रने तमें