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________________ (३७०) मग्या नही. अने कष्ट सहन करवामां तत्पर रह्या. देवता पण साधुने वांदी ऊपर फूलनी वृष्टि करी खस्थानकें गया. सनत्कुमार साधु अंत्यावस्थाये अनशन व्रत लश् काल करी सात सागरोपमने थाउखे त्रीजे देवलोके देवता थया. देवस्थिति पूर्ण थये अनुक्रमें केटलाक मनुष्य तथा देवना जव करी केवलज्ञान उपार्जी मोद सुख पामशे. ए ए. कवीशमा वैराग्योपदेशप्रक्रमने विषे सनत्कुमारनी कथा कही ॥ हवे उ काव्ये करी सामान्य उपदेश कहे . उपजातिटत्तम् ॥ जिनें पूजागुरुपर्युपास्तिः, सत्त्वानुकंपाशुनपात्रदानम्॥गुणानुरागःश्रुतिरागमस्य,नृजन्मसदस्यफलान्यमूनि॥३॥ अर्थः-(नृजन्मवृदस्य के०) मनुष्यजन्मरूप वृदनां (अमूनि के०)श्रा हवे कहेवाशे ते (फलानि के ) फलो बे. ते फलो कहे . तिहां प्रथम तो ( जिनेअपूजा के०)श्रीवीतराग प्रजुनी पूजा करवी ते, तथा बीजुं ( गुरुपर्युपास्तिः के० ) गुरुनी उपासना करवी ते. तथा त्रीजुं ( सत्त्वानुकंपा के०)
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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