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________________ (२७) पड्यो, पण तरतां श्रावडतुं नथी तेथी पाणीमां बूडवा लाग्यो, तिहां तेने को राजहंसीयें दीगे, तेने दया श्रावी तेवारें राजहंसने कहेवा लागी के हे खामी ! बापडो कागडो बूडे , माटे तमें उपकार करी एने काहाडो. तेवारें हंसहंसिणी मली चांचे ताणी पकडीने बाहेर काढ्यो. पड़ी कागडो हंस हंसिणीने पगे लागी कहेवा लाग्यो के हे नाग्यवानो ! हुं ज्यांसुधी जीवतो रहुँ, त्यांसुधी तमारो उपकार मानीश. हवे कृपा करी तमें बेहु जण थाहार नक्षण करवा अमारा वनमां श्रावो. तेवारें हंसें हंसिणीने पूज्यु के केम तहारी शी मरजी ? हंसिणी बोली के हे स्वामी ! उपकार सर्वने करीयें पण अजाण्यानी संगत न करीयें. एम हंसिणीयें वास्यो, तो पण दाक्षिण्यने लीधे हंस, कागडानी साथै वनमां गयो. ते बेहु को लींबडाना काड उपर बेग, ते वृदनी नीचें को राजा श्रावी वीसामाने अर्थे उन्नो रह्यो . तेनी उपर कागडो विध करीने तिहाथी उडी गयो. राजायें चुं जोश्ने हं. सनी उपर बाण मूक्यो, तेथी हंस तडफडतो नूमियें पड्यो, राजायें विचाखु जे था धवल काग ,
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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