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________________ (३०२) संध्या जिनार्चा करे. एकदा उजयणी नगरी चं प्रद्योतनराजाना अंतेउरमा प्रवयों राजायें क्रोध श्राणीने कह्यु के कोश् सात्यकीने मारनार ? तेवारें उमया गणिकायें राजा आगल सात्यकीने मारवानी कबुलात थापी. विश्वासघात करी मारी नखाव्यो ॥ ए प्रमाणे इंजियलोलुप्तपणुं करवायी ते बलवान् एवो सात्यकी नाश पाम्यो. माटें ईजियो वश राखवी॥ ॥ हवे लक्ष्मीनो स्वजाव कहे . निम्नं गति निम्नगेव नितरां निशेव विकंनते, चैतन्यं मदिरेव पुष्यति मदं धूम्येव दत्तेऽधताम् ॥ चापल्यं चपलेव चुंबति दवज्वालेव तृष्णां नय, त्युल्लासं कुलटांगनेव कमला स्वैरं परित्राम्यति ॥७३॥ अर्थः-( कमला के० ) लक्ष्मी, ( निम्नं के०) नीचप्रत्ये ( विनगाश्व के०) नदीनी पेठे ( गति के०) जाय . वली ते लक्ष्मी ( नितरां के०) श्रत्यंत ( चैतन्यं के० ) ज्ञानने (विष्कंजते के) विनाश करे . केनी पेठे ? तो के ( निव के ) नि
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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