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________________ (२०६) व्यानुराग ले. वली (वेषदस्युप्रदोषः केप) शेषरूप चोरने चोरी माटे संध्यासमयसमान बे, अर्थात् जेम चोरनुं जोर संध्या समयमां वधे , तेम ज्यां अर्थानुराग होय त्यां द्वेषरूप चोरनूं जोर वधे .तथा ( सुकृतवनदवाग्निः के० ) सुकृत एटले पुण्य ते रूप जे वन, तेने वनवा श्रमिसमान,श्रर्थात् जेम वननो अग्नि वनने बाले ने तेम ए अर्थानुराग पण सुकृतने बाली नाखे बे, वली (मार्दवांजोदवायुः के०) मृ. कुपणारूप जे मेघ तेनेविषे वायुसमान बे अर्थातू वायुथकी जेम मेघ नाश पामे मे, तेम अर्थानुरागथकी मृत्व जे विनयपणुं ते नाश पामे . वली (नयनलिनतुषारः के०) न्यायरूप जे कमल तेने हिमसमान . अर्थात् कमलनो जेम हिम नाश करे बे, तेम न्यायनो नाश अर्थानुराग करे . माटें सर्व जीवें अत्यंत अर्थ एटले अव्य तेनी उपर अनुरागनो त्याग करवो ॥ ४ ॥ __टीकाः-नूयोपि परिग्रहदोषानाह ॥ कलदेति ॥ श्रत्यर्थं अर्थानुरागः। परिग्रहोपरि मूळरागः ईटशोऽस्ति । कथंजूतः ? कलहएव कलजो बालहस्ती
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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