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________________ माहे गुरुतत्त्वनी जावना नावतां जावतां पांचशेने एक तापसोने केवलज्ञान उपनुं अने पांचशे ने एकने समोसरण देखतां केवलज्ञान उपमुं. तथा पांचशे ने एकने श्रीवीरनी वाणी सांजलतां केवलज्ञान उपन. ते सर्व १५०३ तापस केवली थया थका श्रीवीरने वांदीने केवलीनी सनामां बेग, ते जोश श्रीगौतमस्वामीने शंका उपनी जे बाजना दीकितने केवलज्ञान उपर्नु हशे ? नगवान् बोल्या के केवल ज्ञान उपमुंडे, अने हुँ निर्वाण पामीश तेवारें तकने केवलज्ञान उपजशे. ते सांजली श्रीगौतम स्वामी संतोष पाम्या. अनुक्रमें केवल ज्ञान पामी मोद सुख पाम्या. अने तापस पण मोद सुख पाम्या. एवं गुरु सेवा, फल जाणी हे नव्यलोको ! तमें धर्मना दायक एवा गुरुनी सेवा करो, के जे थकी संसार तरो॥ १६ ॥ इति गुरुसेवाधिकारे श्रीगौतमस्वामी कथा समाप्ता ॥ हवे चार श्लोकोयें करीने जिनमत जेजिनोक्त __सिकांत, तेनुं माहात्म्य कहे जे. ॥ शिखरिणीटतम्॥न देवं नादेवं न शुन
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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