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(ए) शांत साधक, मुगति मारग जान ण ॥ करनी अकरनी सुगति मुर्गति, पुन्न पाप बखान ए॥ संसारसागर तरन तारन, गुन जिहाज विसे खियें ॥ जगमांहि गुरु सम कहि बनारसि, और कोउ न लेखिये॥१४॥ ___ कथाः-कश्रीगुरु, कुबोधना विदलन करनार , तेनी उपर सूर्याजदेवनी कथा कहे जेः-एकदा श्रीमहावीर देव अमलकप्पा नगरीयें समोसस्या तिहां सूर्याल विमानथकी सूर्याजदेवतावांदवा श्राव्या.प्र. जुआगल बत्रीशबक नाटक करी स्वस्थानकें गया.पली गौतमस्वामीयें जगवाननें पूज्यु के महाराज! एवडी कहिएणे केम पामी? तेवारें जगवान कहेता हवा के श्वेतंबिका नगरीमा प्रदेशी राजा, तेनी सूरिकांता जार्या तेनो चित्रनामें सारथी हतो, ते एकदा सावली नगरीयें गयो. तिहां केशी कुमारने देखी वांद्या अने धर्मकथा सांजली. श्रावकधर्म पडिवज्यो. पडी ते चित्रसारथीयें पोताना राजाने प्रतिबोध श्रापवा माटे श्वेतंबीयें पधारवा विनति करी त्यारे गुरुये कह्यु के श्रन्नोदक संबंधे जणाशे. पठी केटलेक दिवसें गुरु श्वेतंबीये श्राव्या, तेनी चित्रसारथीने खबर पडी. तेवारें गुरुने वांदना गया,