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________________ ( २९२ ) संवर-विणिज्जराओ मोक्खस्स पहो, तवो पहो तासि । झाणं च पहाणगं तवस्स, तो मोक्खहेऊयं ॥९६।। ___ अर्थः--मोक्ष का मार्ग संवर और निर्जर। है। इन दोनों का उपाय तप है। तप का प्रधान अंग ध्यान है। इससे यह ध्यान मोक्ष का हेतु है। विवेचन : प्रश्न - मोक्ष का कारण तो सवर और निजं रा है, क्योकि संवर से नये कर्म रुकते हैं और निर्जरा से पुराने कर्म कटते हैं; प्रतः स्वत: ही अन्त में मोक्ष आ कर खड़ा रहता है । परन्तु ध्यान मोक्ष का कारण कसे है ? ____ ध्यान मोक्ष कारण कैसे ? उत्तर-मूल तो संवर और निर्जरा ही मोक्ष-मार्ग है । परन्तु संवर-निर्जरा का उपाय तप है। इसीलिए संवर के ५७ भेदों के अन्तर्गत क्षमादि १० यति धर्मों में नाम दे कर तप कहा एवं संवर के अन्य प्रकारों में कायकष्ट संलीनता आदि तप एक या दूसरे रूप में समाविष्ट होते ही हैं; उसी तरह निर्जरा के १२ भेदों में तो बाह्य व आभ्यन्तर तप है ही। __ इस तरह संवर अर्थात् कर्माश्रव-निरोध और, निर्जरा अर्थात् कर्मक्षय, उनका मार्ग तप है। अब तप का प्रधान अंग शुभ ध्यान है क्योंकि (1) तप के अन्य अनशन प्रादि अगों में यदि ध्यान शुभ न हो तो वह तप रूप नहीं बनता; (२) एवं शुभ ध्यान से ही विशिष्ट कर्मनिर्जरा होती हैं, अतः तप का प्रधान अंग ध्यान है। इस तरह से मोक्ष साधनभूत
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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