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________________ ( २३३ ) 1 1 1 (१२) बोधि दुर्लभ भावना : इस जगत में मनुष्य भव । उसमें भी १५ कर्म भूमियों में तथा उसमें भी अनार्य देश या नीच कुल में न होकर श्रार्य देश में जन्म । तथा उत्तम श्रार्य कुल में जन्म । तथा साथ में प्रखण्ड पांचों इन्द्रिय, आरोग्य । उपरांत दीर्घ आयुष्य । सभी उत्तमेत्तर एक एक से अधिक दुर्लभ हैं । इनकी प्राप्ति प्रत्यन्त दुर्लभ हैं । अरे ! ये मिल भी जाय तब भी इसमें अच्छे कुल संस्कार तथा संत समागम की रुचि प्राप्त होना अति कठिन है और उसके मिल जाने पर भी उनके पास शुद्ध धर्म तत्त्व का श्रवण प्राप्त करना कठिन है । अरे ! यह सब होने पर भी बोधि याने जेन धर्म की प्राप्ति होना, उसका हृदय में स्पर्श होना अत्यन्त महंगी वस्तु है । इसके बिना तो आत्मा का उद्धार है ही नहीं । तब १४ राजलोक में कर्मवश और मोहमूढ बने जीवों की दशा देख कर, ऐसी सुदुर्लभ बोधि यहां प्रति सुलभ होने के संयोग मिलने पर भी, मैं उसे क्यों नहीं अपना लेता ? इससे तो भवान्तर में वह कितनी सुदुर्लभ बन जावेगी ? ध्यान धारा के टूटने पर तुरन्त ही इन १२ भावनाओं में चित्त को लगा देना चाहिये । १२ भावनाओं से लाभ प्रश्न- १२ भावनाओं से क्या लाभ है ? उत्तर - इससे एक लाभ तो यह कि जगत के सचित्त चित्त मिश्र पदार्थों पर से आसक्ति ममता व राग टूटता है, अनासक्त दशा आती है और दूसरे लाभ में भवनिर्वेद होता है व बढता जाता है । उदा० ( १ ) 'अनित्य' भावना से 'सचित्त' याने पहनी, पुत्र प्रादि चेतन पदार्थ, 'अचित्त' याने पैसा माल मिलकत प्रादि, तथा 'मिश्र' याने अलंकार सहित स्त्री आदि सभी अनित्य हैं, उठ कर
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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