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________________ (१८३) परन्तु यह मामना पड़ेगा कि एक ही वस्तु जो कलश रूप थी, वह नष्ट होने से पहला खेद करता है, वही मुकुट रूप हो जाने से दूसरा खुश है और वही स्वर्ण रूप में कायम है अतः राजा को कुछ भी खोने या कमाने का न होने से वह मध्यस्थ रहता है । कहा है : घट-मौली-सुवर्णार्थी नाशोत्पत्ति-स्थितिष्वयम् । शोक-प्रमोद-माध्यस्थ्यं जनो याति सहेतुकम् ।। पयोव्रती न दध्यचि, न पयोऽत्ति दधिव्रतः । अगोरस बनो नोभे तस्मात् तत्त्वं त्रयात्मकम् ।। अर्थ :-घटार्थी मुकुटाथीं व सुवर्णार्थी घटनाश, मुकुटोत्पत्ति तथा सुवर्ण स्थिति में शोक, हर्ष और माध्यस्थ्य भाव का अनुभव करते हैं वह सहेतुक है। (तीनों भाव के हेतु वहां एक में ही उपस्थित हैं।) 'मुझे दुध ही चाहिये' ऐसे व्रत वाला दही नहीं खाता। 'मुझे दही ही चाहिये' ऐसे व्रत वाला दूध नहीं खाता तथा 'मुझे अगोरस ही चाहिये' ऐसे व्रत वाला दूध दही दोनों नहीं खाता । अत: (निश्चित होता है कि) गोरस तत्त्व त्रितयात्मक है; अर्थात् गोरस दूध भी है, दही भी है और गोरस भी है। दूध था तब दही न था, दही बना तब दूध नहीं रहा, पर गोरस तो पहले भी था और अब भी है। इस तरह एक ही पदार्थ त्रितयात्मक बना। नित्य द्रव्य में भी उत्पत्ति नाश किस तरह ? प्रश्न- धर्मास्तिकायादि नित्य द्रव्यों में उत्पत्ति स्थिति नाव किस तरह होता है ? उत्तर- वह इस तरह कि धर्मास्तिकायादि कोई भी द्रव्य वर्तमान समय से सम्बद्ध के रूप में बना हुआ है याने उत्पन्न है।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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