SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६१ ) प्रश्न यदि ज्ञानावरण के उदय को ही कारण बताना है तो वह एक ही कारण कहो । मति-दुर्बलता आदि कारण तो उसमें समाविष्ट हो जाते हैं; क्योंकि वे भी ज्ञानावरण के उदय से ही होते हैं । तो फिर इन सब को भिन्न कारण कहना युक्तियुक्त नहीं है । उत्तर - नहीं वह युक्तियुक्त है । यद्यपि जिनवचन समझ में नहीं आता उसके कारण रूप में ज्ञानावरण के उदय के कार्य को ही बताना है, परन्तु वह भी संक्षेप से तथा विस्तार से दोनों तरह से कहना है । उसमें भिन्न भिन्न संयोग होने से कारण भी भिन्न भिन्न कहे जाते हैं । संक्षेप से कहें तो ज्ञानावरणीय के उदय से होने वाला अज्ञान ही कारणरूप है और विस्तार से बताने में मतिदुर्बलता आदि कारण बताने पड़ते हैं । मति-दुर्बलता आदि ज्ञानावरणीय के उदय के काय तो हैं, परन्तु उपाधि याने विशेषण याने संयोग भिन्न होने से मति-दुर्बलता आदि भिन्न भिन्न कारण होने का कहा जा सकता है। किसी को मतिमंदता से, किसी को वैसे आचार्य के न मिलने से तो कहीं ज्ञेय की गहनता से .... ऐसे भिन्न भिन्न संयोगों से ज्ञानावरण का उदय काम कर जाता है । (५-६) हेतु व उदाहरण का असम्भव (याने न होना) : किसी कथन में हेतु या उदाहरण नहीं मिलने से भी जिनवचन का भाव बुद्धि में न उतरे, ऐसा हो । 'हेतु' याने प्रयोजन अथवा कारण । प्रस्तुत में 'प्रयोजन' अर्थ का कोई उपयोग नहीं हैं। क्योंकि किसी कथन का प्रयोजन समझ में न आने से वह कथन समझ में न आवे, ऐसा नहीं होता। इससे टीकाकार महर्षि ने यहां 'हेतु' शब्द का अर्थ 'कारण' ले कर कारण के रूप में कारक तथा व्यंजक दो अर्थं लिये हैं । इसमें 'कारक' याने उत्पादक, उदा० अग्नि के होने में कारक हेतु ईंधन है; तब 'व्यंजक' या बताने वाला हेतु धुंआ है ।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy