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________________ ( १६० ) हो या चंचल हो तो वाचना सुनते वक्त जिनोक्त पदार्थ का मन में सम्यक् अवधारण न भो हो। जड़ बुद्धि वाला तो समझ ही नहीं सकता, पर जो जड़ नहीं है वह भी बुद्धि के विचलित होने के कारण मन के बाहर के पदार्थों में जाने से वे पदार्थ मन में नहीं उतरते या टिकते नहीं हैं । अब मति यदि सतेज हो, परन्तु २. वैसे आचार्य का अभाव : जरा भी फर्क न हो वैसा यथार्थ तत्त्वप्रतिपादन अच्छी तरह करने में बु.शल आचार्य महाराज नहीं मिले, तो भी जिनवचन समझ में नहीं आ सकता। यहां 'आचार्य' याने, मुमुक्षु आत्माओं द्वारा जिसका आचरण किया जाता है या सेवन किया जाता है वह आचार, उससे सम्पन्न आचार्य का ही मुमुक्षु सेवन करें। परन्तु वैसे आचार्य (१) यदि विपरीत तत्त्व प्रतिपादन करते हों, अथवा (२) विपरीत न हो तब भी सामने वाले को समझ में आवे वैसी सरल शंली से विवेचन करने में चतुर न हों, तो वैसे आचार्य के मिलने से पूर्वोक्त विशेषणों से विशिष्ट जिनवचन के भाव समझ में नहीं आ सकते । इस तरह जिनवचन नहीं समझ सकने में यह कारण, अथवा मति-दुर्बलता ही कारण हो, या दोनों कारणों की भी सम्भावना हो सकती है। अथवा साथ में,.... ३. ज्ञेय की गहनता के कारण : जो जाना जाता है वह 'ज्ञेय' कहलाता है। ऐसे ज्ञेय पदार्थ धर्मास्तिकायादि द्रव्य या नयभंगी आदि; उनकी गहनता के कारण से भी वे समझ में न आवें और जिनवचन का बोध न हो ( अबोध रहे ) ऐसा हो सकता है। 8. ज्ञानावरणीय कर्म का उदय : पहले से या तत्काल वैसे ज्ञानावरणीय कर्म उदय में आने से जिनवचन के भाव समझ में नहीं आवे, ऐसा हो सकता है।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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