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________________ - (१३३ ) निरोध करने की जो प्रक्रिया होती है वह शुक्ल ध्यान रूप होती है । यहां ध्यान का अर्थ मनवचनकाया की स्थिरता; वह इतनी होती है कि उन योगों का याने उनकी प्रवृत्ति का सम्पूर्ण निरोध हो जाता है। यही ध्यान केवलज्ञानी को संसार के अन्तिम काल में होता है। इस ध्यान में क्रम यह रहता है : पहले मनोयोग का निग्रह, फिर वचनयोग का निग्रह, और अन्त में काययोग का निग्रह होता है। - यह तो सिर्फ केवलज्ञानी को अन्त में होने वाले शुक्ल ध्यान के क्रम की बात हुई (अन्य सब महात्माओं को धर्म ध्यान की प्राप्ति हो तब योग और काल के आश्रय से प्राप्तिकम उनकी समाधि के अनुसार होता है अर्थात् उन्हें जिस तरह योगों की तथा काल की स्वस्थता अनुकूलता रहे उस अनुसार क्रम होता है । ) यह क्रम द्वार हुआ। ___.. 'ध्येय' - ध्यान का विषय अब ध्येय द्वार कहते हैं । ध्येय अर्थात् ध्यान का विषय क्या ? श्री तत्त्वार्थ महाशास्त्र अ० ९ सूत्र ३७ में कहा है 'आज्ञाऽपाय विपाक संस्थान विचयाय धर्म्यम्' । यह बताता है कि धर्मध्यान आज्ञा, अपाय, विपाक तथा संस्थान के चितन के लिए होता है। अर्थात् धर्म ध्यान का विषय याने धर्मं ध्यान का 'ध्येय' आज्ञादि चार होते हैं । आज्ञा याने जिनाज्ञा, जिनवचन, जिनागम । अपाय अर्थात् राग द्वेष आदि आश्रवों का अनर्थ । विपाक याने कर्मों के उदय का परिणाम । संस्थान याने १४ राजलोक आदि की स्थिति । इन चारों के बारे में धर्म ध्यान में एकाग्र चिंतन किया जाता है ।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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