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________________ ( ९१ ) 'नाणगुण मुणियसारो' का एक अर्थ यह हुआ कि 'ज्ञान से जीव अजीव के गुणपर्याय का सार पकड़ो।' (ii) 'नाणगुणमुणियसारो' का दूसरा अर्थ : 'ज्ञान के प्रभाव से विश्व का सार पकड़ा हो' इसका भाव यह है कि विशेष श्रृतज्ञान से विश्व के धर्मास्तिकायादि छ द्रव्य जाने, उनके परस्पर सम्बन्ध जाने, उन पर काल, स्वभाव, भवितव्यता, कर्म व पुरुषार्थ नामक पांच कारणों का प्रभाव जाने, उनमें परिवर्तन होने वाले पर्याय जाने। यह सब जान कर उसका यह सार पकड़े कि 'सब द्रव्य द्रव्यरूप से नित्य हैं, किन्तु पर्याय रूप से अनित्य हैं।' इससे अकेला नित्य अंश ही पकड़ कर मोहित होने जैसा नही है, क्योंकि पर्याय पलटने वाला है, बदलने वाला है। अकेले अनित्य अंश को ही पकड़कर घबराने जैसा भी नहीं है, क्योंकि उसका सुख्य स्वरूप नित्य होने से वह कायम रहेगा। उदा० 'आत्मा को शुभ कर्मों के योग से स्वर्गीय सुख सन्मानादि मिले। पर ये सुखपर्याय अनित्य हैं। इनसे मोहित होने जैसा नहीं है। वैसे ही आत्मा को अशुभ कर्मों के संयोग से दुख आवे, तो भी घबराने का नहीं, क्योंकि उसके सब के बीच में आत्मा का असल ज्ञानादि स्वरूप नित्य है, कायम है, आने वाला दुख तो चला जावेगा, पर ज्ञानादि गुण स्थिर रहेंगे। फिर चिन्ता क्या ? इस तरह ज्ञान के प्रभाव से विश्व का सार पकड़ने से हर्ष उद्वेग न होकर उदासीन भाव खड़ा होगा। इससे कर्म बन्धन नहीं होगा, साथ ही ध्यान भग भी न होगा। इससे कर्म-निर्जरा होगी। तात्पर्य यह है कि दोनों अर्थ में जीव अजीव के गुण पर्याय का सार या विश्व का सार पकड़ने से अन्यथा प्रवृत्ति याने रागादि भरी
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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