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________________ (८४ ) ध्यान भूमि का रूप ४ भावनाएं अब प्रथम द्वार 'भावना' का अर्थ समझाते हुए कहते हैं:विवेचन : भावना याने अभ्यास का साधन या अभ्यास का विषय । वह चार प्रकार से है । ज्ञान भावना, दर्शन भावना, चारित्र भावना तथा वैराग्य भावना। ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा वैराग्य से अभ्यास या ज्ञानादि चार का अभ्यास किया जाय वह भावना। प्रत्येक का इन का अभ्यास कैसे किया जाय वह आगे बताते हैं। अभ्यास से मन भावित होता है अत: वह भावना हुई। .. ___ भावना से ध्यान में क्या विशिष्टता ? परन्तु इतना समझ लेना चाहिये कि इन भावनाओं का पहले अभ्यास करने से फिर धर्मध्यान की योग्यता प्राप्त होती है। शुभ ध्यान में रहने के लिए मन की निश्चलता चाहिये और इसके लिए मन से इन ज्ञानादि भावनाओं का अभ्यास करे, तभी वह ध्यान के लिए शान्त और सशक्त बनकर निश्चल होता है। मन का रोष या गरमी में चंचलता आती है और मनकी अशक्तता उसे तत्त्व पर स्थिर होने नहीं देती। उसे दूर करके मन में शान्ति और शक्ति लाने के लिए पहले ज्ञानादि भावनाओं का अभ्यास करना पड़ता है। इस अभ्यास से मन ज्ञान दर्शन चारित्र वैराग्य से भावित होता है, वासित होता है, रंग जाता है। अतः फिर मन को चंचल करने वाले; निसत्त्व करने वाले अज्ञान, मिथ्या ज्ञान, आहार, परिग्रह, इन्द्रिय विषयों, कषायों तथा संसाराक्ति से मन जो अनन्त काल से रंगा हुआ था, भावित हो चुका था, उसमें मन्दता आती है । उसका इन संसारादि के विषयों से भावित होना कुछ हलका या मन्द हो तभी, इस भावितता के कारण मन जो चंचल, अशान्त तथा निसत्त्व
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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