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________________ ३८ ] अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम् संघाडादि का कोई सम्बन्ध न होने पर भी लघुशिष्य, ग्लान साधु, प्रमुख का पडिलेहण तथा परठवव क्रिया यथाशक्ति करता रहूं ॥ ३६ ॥ वसही पवेसि निगम्मि निमिहि श्रावस्सियाण विस्सरो । पायाऽपमज्जणे विय, तत्थेव कहेमि नमुक्कारं ||३७|| वसती- उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'निसीहि' तथा बाहर बाते समय 'आवस्सहि' कहना भूल जाऊँ, या ग्रामादि में प्रवेश - निर्गम समय यही भूल जाऊँ, तो जहां याद आवे वहीं नवकार मंन्त्र जपना न भूलूँ ॥ ३७ ॥ भ्रयवं पसाउ करिडं, इच्छाइ श्रभासम्म बुढेसु । ईच्छा काराकरणे लहूस साहूसु कज्जेसु ||३८|| कार्य प्रसंग में वृद्ध साधुओं को विनंती करते समय भगवन् ! 'पसाउ करिडं' तथा लघु साधुओं को 'इच्छ कार' अर्थात् उनकी इच्छानुसार यह कहना भूल जाऊँ, तब तब
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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