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अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम्
नवकारसी आदि में आये हुए घृतादिक पदार्थ को गुरु महाराज को दिखाये बिना नहीं ग्रहण करूँ, तथा अन्य साधुओं का दंडा तरपणी आदि बिना आज्ञा उपयोग में लू तो आयंबिल करूं ॥२२॥
चौथे व्रत में-तथा पांचवे व्रत में। एगित्थीहिं वत्तं,
न करे परिवाडिदाणमवि तासि ।। इगवरिसा रिह मुवहिं, ... . ठावे अहिगं न ठावेवि ॥२३॥ ___ एकान्त में स्त्रियों व साध्वियों के साथ वार्तालाप न करूँ, तथा उन्हें स्वतन्त्ररूप से पढाऊं नहीं । एक वर्ष जितनी ही उपधि रखू इससे अधिक नहीं ॥२३॥
छडे व्रत मेपत्तग टुप्परगाइ,
पन्नरस उवरिं न चेव ठावेवि । श्राहाराण चउराहं,
रोगे वि असनिहि न करे ॥२४॥