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________________ गुरु प्रदक्षिणा कुलकम् । जीवों को मनुष्य जन्म मिलना दुर्लभ है । तथा सर्वज्ञ भाषित धर्म प्राप्त करना दुर्लभ है, कारण कि मनुष्य जन्म मिलना तो फिर भी सम्भव है किन्तु उसमें सद्गुरु की सामग्री मिलनी तो बहुत ही दुर्लभ है । ६ ॥ जत्थ न दीसंति गुरु, पच्चुसे उट्टिएहिं सुपसन्ना । तत्थ कहं जाणिजइ, जिणवयणं अमिश्रसारिच्छं ॥१०॥ जहां प्रातःकाल उठते ही सुप्रसन्न गुरु के दर्शन नहीं होते वहां जिनवचनों का लाभ कहाँ ? कारण कि गुरु के विना ज्ञान कहां से मिले ॥१०॥ जह पाउसंमि मोरा, दिणयर उदयम्मि कमल वणसंडा। विहसंति तेम तचिय?, ___ तह अम्हे दंसणे तुम्ह . ॥११॥ जैसे मेघ को देखकर मयूर प्रमुदित हो जाते हैं तथा सूर्य के उदित होते ही कमल वन विकसित हो जाता है उसी प्रकार आपके दर्शन करने से ही हे गुरुदेव ! हम भी प्रसन्न हो जाते है ॥ ११॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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