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________________ YC (२७) पाटण शहर___ वहां से झेरड़ा, नवा डीसा, आसेडा, वागडोल, चारुप. तीर्थ पधारने के पश्चात् पाटण शहर में पधारते हुए श्री संघने बेन्ड युक्त प०पू० आ०म० श्री का भारती सोसायटी से स्वागत किया । आगमोद्धारक स्वर्गीय प० पू० आ० श्री सागरानंदसूरीश्वरजी म. सा. के समुदाय के समर्थविद्वान् पन्न्यासप्रवर श्री अभयसागरजी गणिवर्य म० सा० आदि तथा शासनप्रभावक प० पू० आ० श्रीमद्विचयरामचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. के समुदाय के संयमी पूज्य पंन्यास श्रीप्रद्योतनविजयजी गणिवर्य म० सा० आदि सामने पधारने से सबके आनंद में अभिवृद्धि हुई। श्रीपंचासरा पार्श्वनाथ प्रभु के दर्शनादि कर सागर के उपाश्रय में पधारे। वहां पर प० पू० आ० म० श्री का प्रवचन पश्चात् प्रभावना हुई। दूसरे दिन सुबह स्वागत युक्त खेतरवशी का पाडा में पधारे । वहां 'श्रीभुवनविजयजी जैन पाठशाला' का इनाम मेलावडा के प्रसंग पर प० पू० आ०म० सा० का 'सम्यगज्ञान की महत्ता' विषय पर विशिष्ट प्रवचन होने के पश्चात् गणि श्री निरुपमसागरजी म. सा० का भी प्रवचन हुआ। धार्मिक शिक्षकादि के भी तद् विषयक वक्तव्य होने के बाद पाठशाला की बहिनों को इनाम देने का कार्यक्रम रहा। प्रान्ते प० पू० आ० म० सा० का सर्वमंगल के पश्चात् प्रभावना हुई।
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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