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कर्म कुलकम्
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श्रणुत्तरा सुरा सायासुक्खसोहग्गलीलया । कहं पावंति चवणं ?, न हुतं जइ कम्मयं ॥२१॥
- अनुत्तर विमानवासी श्रेष्ठ देवो जो शातावेदनीय और सौभाग्य सुख की पूर्ण सामग्री युक्त होते हैं वे भी वहां से च्यव कर मृत्युलोक में आते हैं यह कर्म नहीं होता तो किस तरह बनता १ ॥ २१ ॥
॥ इति श्री कर्म कुलकस्य हिन्दी सरलार्थः समाप्तः ॥
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