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________________ इन्द्रियादि विकार निरोध कुलकम् [१३३ रिद्धिमए साणाइ, सोहग्गमएण सप्पकागाई। नाणमएण बइल्ला, हवंति मय श्रट्ट अइदुट्ठा ॥३॥ ऋद्धि मद से श्वान, सौभाग्य मद से सर्प-कौआ और ज्ञान मद से बैल योनि में जन्म धारण करना पडता है, इस प्रकार आठों प्रकार के मद अत्यन्त दुष्ट है ॥ ४ ॥ कोहणसीला सीही, मायावी बगत्तणमि वच्चंति। लोहिल्ल मूसगत्ते, एवं कसाएहिं भमडंति ॥४॥ क्रोधी व्यक्ति अग्नि में उत्पन्न होता है। मायावी वगुले की योनि में उत्पन्न होता है । लोभी चूहे की योनि में उत्पन्न होता है। इस प्रकार से कषायों द्वारा जीवों को दुर्गति में भ्रमण करना पड़ता है ॥ ४॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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