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________________ श्री गौतम कुलकम् [ १०३ सम्बं बलं धम्मबलं जिणाइ, ___ सव्वं सुहं धम्म सुहं जिणाइ ॥१६॥ सर्व कलाओं को एक धर्म कला जीत जाती है। कथाओं में धर्म कथा सर्वश्रेष्ठ है । सर्व बलों में एक धर्म बल श्रेष्ठ है, सर्व सुखों में धर्म का सुख सर्व सुख श्रेष्ठ है । अर्थात् धर्म सर्व विषयों में जयवन्त है ॥ १६ ॥ जूए पसत्तस्स धणस्स नासो, मंसे पसत्तस्स दयाइ नासो। मज्जे पसत्तस्स जसस्स नासो, वेसा पसत्तस्स कुलस्स नासो ॥१७॥ जुगार या सटीरियों का धन अवश्य ही नष्ट होने वाला होता है, मांस में आसक्त व्यक्ति दयाहीन होता है, मदिरा आसक्त व्यक्ति का यश नष्ट होता है, तथा वैश्या में जो आसक्त होता है उसके कुलका नाश होता है ।। १७ ॥ हिंसा पसत्तस्स सुधम्म नासो, चोरी पसत्तस्स सरीर नासो। तहा परत्थिसु पसत्तयस्स, सव्वस्स नासो ग्रहमा गई य ॥१८॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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